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कविता

कवि

डॉ. भारत खुशालानी


कविता करने में
क्या हानि है?
क्या कविता करना
निक्कमेपन की निशानी है?
कवि अपनी मस्ती में
कविता लिखता है
दूसरों को वह
खाली बैठा दिखता है
कितनी कला से उसने
विचारों को कागज पर सँजोया है
बाहरवालों की नजरों में
अपना आत्मसम्मान खोया है
दस बार पढ़कर ही
संतुष्ट है स्वंकृति से
तड़पता है किसी
पत्रिका की स्वीकृति से
पूरी जिंदगी भर
कवि बेपनाह है
और सोचता है क्या कविता करना
एक गुनाह है?
एक कवि
भूखों मरता है
थोड़ी सी आमदनी
के लिए तड़पता है
यह स्थिति बड़ी
पेचीदा है
समाज की दुत्कारों से
अब वो रंजीदा है
हम भूल गए हैं
कि विचारों की ही है उत्कृष्टि
जिसके कारण
चल रही है यह सृष्टि
निंदा करने की अपेक्षा
लोगों को कवि को पढ़ना है
क्योंकि इसी प्रकार से
समाज ने सीखा आगे बढ़ना है


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